Friday, April 29

वो जो मुझसे दूर हो गयी

मुँडेरों से झाँकती हुई,

ओस की बूंदों सी,

मेरे आँगन में गिरती है |

सतरंगी परचम लहराती ,

बादलों की ओट से,

लुकाछिपी खेलती खिलखिलाती है|

अधनंगे बदन पर,

सिर्फ़ एक सफ़ेद रेशमी दुपट्टा ओढ़े,

मुझे ललचाती है|

जो हर सुबह,

अखबारी काला सफ़ेद पोंते,

मेरे दरवाज़े पर दस्तक देती है|

खोलते हीं गुम् हो जाना,

मिचमिचाती आँखों के साथ,

लुकाछिपी खेलती है|

वो खुशी आज सुबह,

मेरे बिस्तर पर लेटी मुझे मिली|

उठने के साथ चाय की प्याली देकर,

झिलमिल सी आँखों में मुस्कान भर कर,

नाश्ता बनाने किचन में चली गयी|

जिस खुशी ने मुझसे दूरी कर ली थी,

दिन भर मुझसे बतियानें बैठी|

बोली अब यहीं रहूँगी|

जब तक वो काले घनेरे बादल,

फिर तुम्हारे अंदर से मुझे धकेल नहीं देते|