Sunday, December 28

मेरा शून्य !!


कुछ चिढ़ता सा चिल्लाता सा,
डरता सा घबराता सा;
बढ़ता है वीरानो का सन्नाटा,
देख मुझे वीराना सा

कभी हँसी खुशी में ढल जाता,
साँसों में मेरी गल जाता;
पर बढ़ता है अविरल चलता,
देख मुझे दीवाना सा

हाथों को मेरे थामे,
नदियों और पहाडों पर;
रुकता सा और थकता सा,
पर देख मुझे हीं बढ़ता था

जिव्हा पर एक जबानी सा,
साँसों में छिपता पानी सा;
गीतों में मेरी हीं कहानी सा,
वीरानो का जो सानी था

अब तो अथाह में भी मीठापन,
नीले में भरता सादापन;
पर दामन थाम के घूम रहा,
मेरा अब भी मेरा सूनापन