मुँडेरों से झाँकती हुई,
ओस की बूंदों सी,
मेरे आँगन में गिरती है |
सतरंगी परचम लहराती ,
बादलों की ओट से,
लुकाछिपी खेलती खिलखिलाती है|
अधनंगे बदन पर,
सिर्फ़ एक सफ़ेद रेशमी दुपट्टा ओढ़े,
मुझे ललचाती है|
जो हर सुबह,
अखबारी काला सफ़ेद पोंते,
मेरे दरवाज़े पर दस्तक देती है|
खोलते हीं गुम् हो जाना,
मिचमिचाती आँखों के साथ,
लुकाछिपी खेलती है|
वो खुशी आज सुबह,
मेरे बिस्तर पर लेटी मुझे मिली|
उठने के साथ चाय की प्याली देकर,
झिलमिल सी आँखों में मुस्कान भर कर,
नाश्ता बनाने किचन में चली गयी|
जिस खुशी ने मुझसे दूरी कर ली थी,
दिन भर मुझसे बतियानें बैठी|
बोली अब यहीं रहूँगी|
जब तक वो काले घनेरे बादल,
फिर तुम्हारे अंदर से मुझे धकेल नहीं देते|